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शुभ-भ्रमण
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27 मार्च 2011
24 सित॰ 2010
शाम ढले घर रोज सुनो तुम आजाना
बड़ा निठुर हो चला
आज का ये जमाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
कही कडकती बिजली
दिल में घर करती है
लगातार बारिश
अनजाने डर करती है
तभी पड़ोसी का आकर
कुछ खबर सुनाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
समझ रही हूँ काम बिना
जीवन न चलता
पर दिल में रहती है
जैसे कोई विकलता
सुबह चाय पीकर
कुछ खाकर जो जाते हो
न मन का कुछ सुन पाते
न कह पाते हो
सुनो गावं की सडकें
टूटी व् जर्जर है
नदी की टूटी पुलिया
पानी से तर है
एकली राह पे सूनापन
है वक्त बेगाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
आज का ये जमाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
कही कडकती बिजली
दिल में घर करती है
लगातार बारिश
अनजाने डर करती है
तभी पड़ोसी का आकर
कुछ खबर सुनाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
समझ रही हूँ काम बिना
जीवन न चलता
पर दिल में रहती है
जैसे कोई विकलता
सुबह चाय पीकर
कुछ खाकर जो जाते हो
न मन का कुछ सुन पाते
न कह पाते हो
सुनो गावं की सडकें
टूटी व् जर्जर है
नदी की टूटी पुलिया
पानी से तर है
एकली राह पे सूनापन
है वक्त बेगाना
शाम ढले घर रोज
सुनो तुम आजाना
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