अभी तुम्हारी याद की
अभी तुम्हारी बात की
फिर बात तुमसे करने को है मन किया
क्यों मगर यूँ मुझको टाल के चले गये
तुम सुनो कि
पल तुम्हारे बिन कठिन बन जाता है
तुम सुनो कि
विरह कितने दुःख घने जन जाता है
कि नही फिर तुम
विजोगों में अकेली मै
ले ले प्राण ऐसी पीर डाल के चले गये ...!
कि मै जानूं
घना दुःख तुमको भी होए
कि मै जानूं
किबाड़े के पछीते मुंह छुपा रोये
"चलो" मुझसे कहा इतना मगर ले न गये
अकेले ही अकेले उर उबाल के चले गये...!
मेरे साथी ....जिन्होंने मेरी रचनाओं को प्रोत्साहित किया ...धन्यवाद
शुभ-भ्रमण
नमस्कार! आपका स्वागत है यहाँ इस ब्लॉग पर..... आपके आने से मेरा ब्लॉग धन्य हो गया| आप ने रचनाएँ पढ़ी तो रचनाएँ भी धन्य हो गयी| आप इन रचनाओं पर जो भी मत देंगे वो आपका अपना है, मै स्वागत करती हूँ आपके विचारों का बिना किसी छेड़-खानी के!
शुभ-भ्रमण
शुभ-भ्रमण
30 जुल॰ 2010
29 जुल॰ 2010
विरहा औ वियोग का उर खोह है...!
दूर तुमसे बस तुम्हारी जोह है
पास तेरे हूँ तो उहा-पोह है
क्यों नही मिलता कोई निर्णय सही
क्यों हमेशा है मुझे पीड़ा वही
क्यों तो लगता है कि यह तुमको नही
जिस तरह का हाँ मुझे बिछोह है
पास हूँ तेरे तो उहा-पोह है...!
कौन है मुझको कि देता ताड़ना
क्या बताऊँ क्या कि दिल का फाड़ना
किस तरह सहूँ विरह प्रताड़ना
विरहा औ वियोग का उर खोह है
पास हूँ तेरे तो उहा-पोह है...!
पास तेरे हूँ तो उहा-पोह है
क्यों नही मिलता कोई निर्णय सही
क्यों हमेशा है मुझे पीड़ा वही
क्यों तो लगता है कि यह तुमको नही
जिस तरह का हाँ मुझे बिछोह है
पास हूँ तेरे तो उहा-पोह है...!
कौन है मुझको कि देता ताड़ना
क्या बताऊँ क्या कि दिल का फाड़ना
किस तरह सहूँ विरह प्रताड़ना
विरहा औ वियोग का उर खोह है
पास हूँ तेरे तो उहा-पोह है...!
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